NEET 2025: OMR शीट में गलत Booklet Code भरने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने NTA को छात्रा की शीट दोबारा जांचने का निर्देश दिया


NEET UG 2025 की परीक्षा में उत्तर प्रदेश की एक छात्रा द्वारा की गई एक छोटी सी गलती ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। अमेठी जिले की छात्रा अक्सिता सिंह ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर बताया कि उसने परीक्षा में बुकलेट कोड 47 पर उत्तर दिए थे, लेकिन OMR शीट पर गलती से कोड 46 भर दिया गया। इस त्रुटि के कारण उसका मूल्यांकन गलत उत्तरकुंजी के आधार पर हुआ और उसे मात्र 41 अंक प्राप्त हुए। याचिका में यह भी कहा गया है कि अगर मूल्यांकन सही बुकलेट कोड से किया जाए तो उसके 589 अंक बनते हैं

इस मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा और न्यायमूर्ति डॉ. योगेन्द्र कुमार श्रीवास्तव शामिल थे, ने इसे लिपिकीय त्रुटि मानते हुए National Testing Agency (NTA) को निर्देश दिया है कि वह छात्रा की OMR शीट को सही बुकलेट कोड के आधार पर पुनः जांचे। यह आदेश इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मामला छात्रों की परीक्षा प्रणाली में मानवीय त्रुटियों से उत्पन्न जटिलताओं को रेखांकित करता है।

याचिकाकर्ता की ओर से उठाए गए बिंदु

याचिका में यह स्पष्ट किया गया कि:

  • छात्रा ने परीक्षा के दौरान बुकलेट कोड 47 पर ही उत्तर दिए थे।
  • OMR शीट भरते समय उसने अनजाने में कोड 46 भर दिया।
  • इस कारण मूल्यांकन गलत उत्तरकुंजी से किया गया और अंक केवल 41 आए।
  • याचिकाकर्ता की ओर से यह भी दावा किया गया कि सही मूल्यांकन में उसके अंक 589 हैं।

इस आधार पर छात्रा ने न्यायालय से मांग की कि उसकी OMR शीट को उस बुकलेट कोड के अनुसार दोबारा जांचा जाए जिस पर उसने वास्तविक परीक्षा दी थी।

कोर्ट की टिप्पणी (अक्षरशः)

“The difference between 589 and 41 is grave and invites serious consequences. There has been a clerical mistake, such mistakes are permissible to be corrected under Section 152 of the CPC, 1908.”
Hon’ble Mr. Justice Arindam Sinha

हिंदी अनुवाद:

“589 और 41 अंकों के बीच का अंतर गंभीर है और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। यह एक लिपिकीय त्रुटि है, जिसे सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 152 के अंतर्गत सुधारा जा सकता है।”

न्यायालय ने इस टिप्पणी में स्पष्ट किया कि इस प्रकार की त्रुटि को केवल तकनीकी भूल नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसका सीधा असर छात्रा के भविष्य और करियर पर पड़ता है।

NTA का पक्ष (अक्षरशः)

“OMR answers are machine gradable and evaluation was done with utmost care and caution. Booklet code was not challenged during the response window of June 3–5. Candidate approached on June 14.”
Fuzail Ahmad Ansari, Advocate for NTA (Respondent No. 3)

हिंदी अनुवाद:

“OMR उत्तर मशीन द्वारा जांचे जाते हैं और मूल्यांकन अत्यंत सावधानी और सतर्कता के साथ किया गया। बुकलेट कोड को 3–5 जून की आपत्ति विंडो के दौरान चुनौती नहीं दी गई थी। उम्मीदवार ने 14 जून को संपर्क किया।”

NTA ने कोर्ट में यह तर्क रखा कि उत्तर पुस्तिकाओं की जांच एक स्वचालित और सटीक प्रक्रिया से होती है, जिसमें मानवीय हस्तक्षेप की गुंजाइश कम होती है। साथ ही, छात्रा ने निर्धारित समयसीमा के बाहर संपर्क किया।

कोर्ट का विश्लेषण

हालांकि NTA की प्रक्रिया को कोर्ट ने मान्य माना, लेकिन कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब कोई त्रुटि स्पष्ट रूप से प्रमाणित हो और उसके कारण अत्यधिक नुकसान हो रहा हो, तो न्यायिक हस्तक्षेप आवश्यक हो जाता है।

कोर्ट ने कहा कि मूल्यांकन प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता आवश्यक है। जब त्रुटि से संबंधित तथ्य स्पष्ट रूप से सामने हों और छात्रा ने यह स्पष्ट कर दिया हो कि उसकी गलती जानबूझकर नहीं थी, तो उसे एक और अवसर देना न्यायसंगत है।

आदेश

  • NTA को आदेशित किया गया कि वह छात्रा की OMR शीट को Booklet Code 47 के अनुसार पुनः मूल्यांकन करे।
  • पुनर्मूल्यांकन की रिपोर्ट 15 जुलाई 2025 को अगली सुनवाई से पहले न्यायालय में प्रस्तुत की जाए।

इस निर्देश के साथ, न्यायालय ने यह भी संकेत दिया कि छात्र के अधिकारों की रक्षा के लिए लचीलेपन की आवश्यकता है, विशेष रूप से जब मामला जीवन-निर्धारित परीक्षा से जुड़ा हो।

इस केस से जुड़ा आधिकारिक कोर्ट ऑर्डर (PDF) आप नीचे दिए गए लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं:
📄 डाउनलोड करें: Allahabad HC Order in Akshita Singh vs NTA (NEET 2025)

क्यों है यह मामला महत्वपूर्ण?

यह मामला न केवल एक छात्रा के व्यक्तिगत करियर से जुड़ा है, बल्कि पूरे NEET मूल्यांकन सिस्टम पर सवाल भी उठाता है। मशीन ग्रेडिंग प्रणाली में मानवीय गलती को कैसे सुधारा जाए, यह प्रश्न अब स्पष्टता की मांग करता है।

अगर पुनर्मूल्यांकन में छात्रा को वाकई 589 अंक मिलते हैं, तो यह मामला अन्य छात्रों के लिए भी मिसाल बन सकता है, जो अनजाने में ऐसी त्रुटियां कर बैठते हैं।

इस केस ने यह स्पष्ट कर दिया है कि एक छोटी सी लिपिकीय गलती भी छात्र के जीवन की दिशा बदल सकती है। जबकि तकनीकी प्रक्रियाएं सटीकता के लिए होती हैं, लेकिन जब वे मानवीय त्रुटियों को नज़रअंदाज करने लगें, तो न्यायपालिका का हस्तक्षेप आवश्यक हो जाता है।

LiveLaw Hindi और Verdictum की रिपोर्ट में दर्ज तथ्यों के अनुसार, अदालत का यह फैसला एक संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाता है, जहां नीतिगत नियमों और मानवीय न्याय के बीच संतुलन स्थापित किया गया है।

स्रोत:

LiveLaw Hindi: https://hindi.livelaw.in/category/top-stories/allahabad-hc-directs-re-checking-of-neet-aspirants-omr-who-accidentally-mentioned-wrong-booklet-code-297174
Verdictum: https://www.verdictum.in/court-updates/high-courts/allahabad-high-court/akshita-singh-vs-union-of-india-1584427

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